कुछ लोग इतनी सफाई से झूठ बोलते है कि वह सुनने वाले को सच जैसा लगता है और कुछ लोग लाख सच बोले पर उन पर भरोसा नहीं होता, इसे आप चाहे तो इसे कला समझें या सुनने वाले की कमजोरी या फिर होशियारी। दरअसल यह पूरा खेल एक माइंड सेट का है। हमारे दिमाग में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग छवियां है यानि हम बात सुनने से पहले धारणा बना लेते है कि अगला सच बोलेगा या झूठ, इसी तय फार्मूलें पर हम उसकी बात सुनते है और तय कर लेते है कि यह झूठ बोल रहा है या सच। एक सच यह भी है कि हम भी झूठ सुनने बोलने के आदि है क्योंकि हमने स्वीकार कर लिया है कि 'सब चलता' है।
खुजराहों से जाकर फं्र ास में जा बसे हमारे एक दोस्त सुरेन्द्र गुप्ता से पिछले सप्ताह जोधपुर में मुलाकात हुई वे हैण्डीक्राट बिजनेस के सिलसिले में जोधपुर आते रहते है। गुप्ता के साथ
फ्र ांस मूल का एक कपल ाी उनके साथ था। मैं उनका जिक्र इसलिए कर रहा हंू कि इसका सच्चाई से गहरा रिश्ता है। कभी सुरेन्द्र गुप्ता खुजराहों में टूरिस्ट गाइड थे, उनकी भारत भ्रमण पर आई फ्रेंच लड़की क्वओलविनं से आंखें चार हुई और अततज् सुरेन्द्र ने उस लड़की से शादी कर ली और खुद फ्र ांस जाकर बस गए। सुरेन्द्र चूंकि हमारे मुल्क से गए उन्हें फ्र ांस के पारदर्शी सोच में ढलने में बरस लग गए। फ्रांस में झूठ का कोई स्थान नहीं है क्योंकि वहां कोई क्वबंदिशं नहीं है यानि एक बिदांस और आजाद मुल्क है। पति पत्नी को अपनी गलती बताने में हिचक नहीं करता तो बेटा बाप को अपनी प्रेम कहानी दोस्त की तरह सुना देता है। सुरेन्द्र चूंकि गए हिन्दुस्तान से ही थे, 10 साल के दापत्य जीवन के बाद वहां उनकी पत्नी की सहेली उनके जीवन में आ गई, यह बात कहीं से सुरेन्द्र की पत्नी ओलविन को मालूम चली, इस बीच सुरेन्द्र भारत आ चुके थे, मैने दोनों पति-पत्नी को फोन पर झगड़ते देखा, जब तक सुरेन्द्र ने सच स्वीकार नहीं किया, झगड़ा शांत नहीं हुआ। फ्र ांस जैसे पारदर्शी देश में झूठ बोलने का कोई मतलब नहीं था फिर भी सुरेन्द्र ने झूठ बोला और अततज् सच बोलने में उसे भलाई नजर आई। सच बोलने के लिए वहीं पर बैठे दूसरे फे्रंच कपल ने उसे हिमत बंधाई, सच बोल कर सुरेन्द्र ने राहत महसूस की उसका चेहरा बता रहा था जैसे उसके सिर से कोई बोझ उतर गया। पत्नी ने उसे सच बोलने पर माफ भी कर दिया।
इस पूरी सच्चाई का सार यह है कि सच बोलने का अपना आनंद है और झूठ बोलने का मतलब बेवजह का तनाव। फ्रांस में पारदर्शी संस्कृ ति है तो आदमी झूठ क्यों बोलेगा, हमारे यहां ाी सच बोलने पर पांबदी नहीं है लेकिन झूठ बोलने की आजादी जरूर है। जरा सोचंे, सच बोलने के कितने सुख है और झूठ बोलने के कितने दुख। निष्कर्ष यह है कि सच बोलने से जब तक किसी का जान नहीं जा रही हो तब तक सच बोलना चाहिए। आज से ही सच का साथ दें। तकलीफ तो होगी लेकिन आप अपने आप मेें किसी महात्मा के दर्शन करेंगे और खुद को हल्का महसूस करेंगे।
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om banna;
ReplyDeleteaap ko badhai, yah silsila jari rahe. sach bolne se jyada aanaddai hai use swikarna.bahut sahi likha hai aap ne.
kirti rana/096729-90299
SWagat hai bhaisaheb, kirtiji se pata chala to pahli furshat main YAHAN hajir hua... bahut achchha laga.
ReplyDeleteAaaderneeya Om Bhai Sa’b
ReplyDeleteSach me, sach bolne se naitik bal aur aatmavishwas ko majbooti to milti hi hai, sach bolne ke naisargik aanand ke samne kuch bhi nahi. Patrakrita ‘Kajal Ki Kothari’ hai. Ho sakta hai, isme rahane wale vyakti ka sach aaspaas ke logon ki jhooth ke saamne feeka par jaaye, lekin uske aatmavishwas aur naitik bal ko koi kamjor nahi kar sakta.
Mujhe poora vishwas hai Hamari Jaajam per vicharon ke aadan-pradaan ka yeh silsila anvarat jaari rahega.
Aapka Chhota Bhai
Anil Singh
9672937840
सर,
ReplyDeleteसच बोलने का एक लाभ ये भी है कि आपने क्या बोला था उसे याद रखने की जरुरत नहीं पड़ती पर जब आदमी झूठ बोलता है तो उसे याद रखना पड़ता है कि उसने कब और क्या कहा था. हमारी जाजम के लिए बधाई!
संजीव समीर, कोडरमा
9431394736